National Emergency Article 356

अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति राज्य में आपातकाल की उद्घोषणा कर सकता है। इसे संवैधानिक आपातकाल और राष्ट्रपति शासन भी कहते हैं। प्रत्येक राज्य में संकटकाल में उसके अस्तित्व को बनाए रखने के लिए किसी ऐसे शक्तिसम्पन्न अधिकारी का होना आवश्य है, जिसको आपातकालीन परिस्थिति का सामना करने के लिए विशिष्ट सत्ता प्राप्त हो। संघीय देशों में यह सत्ता केन्द्रीय सरकार में निहित होती है। संकटकालीन स्थिति में इसका सामना करने के लिए मुख्य उत्तरदायित्व राष्ट्रीय कार्यपालिका का ही होता है। भारत में यह उत्तरदायित्व भारतीय राष्ट्रपति का है। तथा भारतीय संविधान के 18वें भाग में राष्ट्रपति की संकटकालीन शक्तियों का उल्लेख किया गया है। भारतीय संविधान निर्माताओं ने संकटकाल का सामना करने के लिए विशेष अनुच्छेद लिखे।उन्होंने संकटकाल का सामना करने के लिए राष्ट्रपति को विशेष अधिकार दिए हैं। इन शक्तियों को तीन भागों में विभक्त करके वर्णन किया गया है।
ऐसा संकटकाल सबसे पहले 26 अक्तूबर, 1962 को घोषित हुआ, जबकि चीन ने हमारे देश पर आक्रमण किया। सन् 1965 में पाकिस्तान द्वारा आक्रमण किए जाने के समय यह घोषणा लागू की गई जो जनवरी, 1968 तक लागू रही। 3 दिसम्बर, 19 को बांग्लादेश की परिस्थितियों तथा पाकिस्तान द्वारा फिर आक्रमण के कारण इसे लागू करना पड़ा। 26 जून, 1975 में आन्तारिक गड़बड़ी के खतरे के कारण आपात्काल की घोषणा कर दी गई थी जो 22 मार्च, 1977 को समाप्त हुई थी। https://www.drishtiias.com/hindi/daily-updates/daily-news-editorials/article-356-and-judicial-activism

भारतीय सविधान में 3 प्रकार  में आपातकाल कि बात कि गयी है

1 . युद्ध, बाहरी आक्रमण या सशक्त विद्रोह से उत्पन्न संकटकाल (Art. 352 )

2. किसी राज्य अथवा राज्यों में संवैधानिक यन्त्र के असफल हो जाने से उत्पन्न संकटकाल ( Art. 356)

3. वित्तीय संकटकाल ( Art. 360)

1. युद्ध, बाहरी आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह से उत्पन्न संकटकाल ( Art 352 ) –

संविधान के अनुच्छेद 352 के अन्तर्गत राष्ट्रपति National Emergency की घोषणा कर सकता है। अगर राष्ट्रपति को यह विश्वास हो जाए कि युद्ध, विदेशी आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह के कारण भारत अथवा किसी क्षेत्र की सुरक्षा खतरे में है, तब वह समूचे देश में या देश के किसी एक या कुछ भागों में संकटकाल की घोषणा कर सकता है। संविधान के 44वें संशोधन के अनुसार राष्ट्रपति संकटकाल की घोषणा तब करेगा, जब मन्त्रिमण्डल संकटकालीन घोषणा की लिखित रूप से सलाह दे।

राष्ट्रपति की राष्ट्रीय संकट की घोषणा एक महीने तक लागू रह सकती है। एक महीने के अन्दर संसद से विशेष बहुमत (2/3 बहुमत) द्वारा स्वीकृति प्राप्त करना आवश्यक है, अन्यथा इस प्रकार की घोषणा समाप्त हो जाती है लेकिन स्वीकृति मिलने पर ऐसी घोषणा 6 महीने तक लागू रहती है और यदि ऐसी घोषणा को लागू रखना हो तो 6 महीने बाद पुनः 2/3 बहुमत से संसद की स्वीकृति आवश्यक है। इस दौरान यदि लोकसभा भंग हो तो राज्यसभा को ही स्वीकृति ली जाती है। नई लोकसभा बनने पर उसकी स्वीकृति प्राप्त की जाती है। अगर नई लोकसभा 30 दिन के अन्दर स्वीकृति न दे तो भी घोषणा समाप्त हो जाती है।

44वें संशोधन द्वारा यह व्यवस्था की गई है कि लोकसभा के उपस्थित एवं मतदान में भाग लेने वाले सदस्यों के साधारण बहुमत से संकटकाल की घोषणा समाप्त की जा सकती है। इस पर विचार करने के लिए लोकसभा की बैठक 1/10 सदस्यों (कोरम )की माँग पर 14 दिन के अन्दर-अन्दर बुलाई जाएगी 44 वें संवैधानिक संशोधन द्वारा की गई व्यवस्था के अनुसार ही राष्ट्रपति द्वारा लगाई गई आपातकालीन घोषणा को न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है।
घोषणा के प्रभाव (Effects of the Declaration)

National Emergency Article 356

(1) सारे देश का शासन राष्ट्रपति के हाथों में आ जाता है और वह राज्य सरकारों को आदेश दे सकता है कि कार्यपालिका शक्ति का प्रयोग किस प्रकार करें।

(2) संसद को पुरे देश के लिए अथवा जिस भाग को संकटकाल की घोषणा की गई है, के लिए राज्य सूची में दिए गए विषयो पर भी कानून बनाने का अधिकार होगा। इस प्रकार भारत का संघीय ढाँचा एकात्मक ढाँचे में बदल जाएगा।

(3) अनुच्छेद 19 के अन्तर्गत नागरिकों को दी गई स्वतन्त्रताएँ इक बार के लिए पोस्टपोंड हो जाएंगी और राज्य के द्वारा इन स्वतन्त्रताओं को प्रतिबन्धित या स्थगित करने वाले कानूनों का भी निर्माण किया जा सकेगा। ऐसे कानूनों के विरुद्ध नागरिकों को न्यायालय में जाने अधिकार नहीं होगा।

(4) 44वें संशोधन द्वारा यह व्यवस्था की गई है कि सरकार अनुच्छेद 21 के अन्तर्गत दिए गए स्वतन्त्रता के अधिकारों को लागू करवाने के लिए नागरिकों के न्यायालयों में जाने के अधिकार को निलम्बित नहीं किआ जा सकता है।राष्ट्रपति अनुच्छेद 32 में दिए गए नागरिकों के अधिकारो को भी स्थगित कर सकता है।

(5) संकटकाल के समय संसद को कानून पास करके अपनी अवधि को एक वर्ष तक बढ़ाने का अधिकार मिल जाता। परन्तु यह अवधि संकटकालीन घोषणा समाप्त होने के छह महीने से अधिक नहीं बढ़ाई जा सकती।

(6) राष्ट्रपति को संघ तथा राज्यों के बीच राजस्व के विभाजन में परिवर्तन करने का अधिकार मिल जाता है।

ऐसा संकटकाल सबसे पहले 26 अक्तूबर, 1962 को घोषित हुआ, जबकि चीन ने हमारे देश पर आक्रमण किया। सन् 1965 में पाकिस्तान द्वारा आक्रमण किए जाने के समय यह घोषणा लागू की गई जो जनवरी, 1968 तक लागू रही। 3 दिसम्बर, 19 को बांग्लादेश की परिस्थितियों तथा पाकिस्तान द्वारा फिर आक्रमण के कारण इसे लागू करना पड़ा। 26 जून, 1975 में आन्तारिक गड़बड़ी के खतरे के कारण आपात्काल की घोषणा कर दी गई थी जो 22 मार्च, 1977 को समाप्त हुई थी।

2. राज्यों में संविधान के असफल होने पर ( Art. 356)

अनुच्छेद 356 के अन्तर्गत यदि राष्ट्रपति को प्राप्त सूचना के आधार पर या राज्य के राज्यपाल की लिखित रिपोर्ट पर यह विश्वास हो जाए कि राज्य का शासन संविधान के अनुसार नहीं चल रहा है, तो वह राज्य में संविधान के असफल होने की घोषणा कर सकता है।

संकटकालीन घोषणा करने की प्रक्रिया (Procedure of declaring Emergency) – राष्ट्रपति द्वारा की गई राज्य में संविधान के असफल होने की घोषणा संसद के दोनों सदनों द्वारा 2 मास के अन्दर स्वीकृत होनी चाहिए अन्यथा 2 मास बाद वह समाप्त हो जाएगी। लेकिन 2 मास में संसद की स्वीकृति मिलने पर छः महीने तक ऐसी घोषणा लागू रहेगी। संविधान के 44 वे संशोधन के अन्तर्गत यह व्यवस्था की गई है, ‘जब संसद राष्ट्रपति द्वारा लागू की गई घोषणा को स्वीकार कर लेगी तो यह घोषणा एक समय में छह मास तक लागू रहेगी तथा इसे छह महीने और भी बढ़ाया जा सकता है।’

इस प्रकार 44वें संशोधन के अनुसार इस प्रकार की घोषणा साधारणतया एक वर्ष तक लागू रह सकती है। कि 44वें संशोधन से पूर्व ऐसी घोषणा की अधिकतम अवधि 3 वर्ष थी। लेकिन फिर 44वें संशोधन के अनुसार, ‘राज्य में संवैधानिक ढांचा फेल होने की घोषणा तीन वर्ष के स्थान पर एक वर्ष से अधिक तभी लागू रह सकती है, यदि उस समय राष्ट्रीय संकटकालीन घोषणा लागू हो या च आयोग यह प्रमाण-पत्र दे कि राज्य की विधानसभा के चुनाव करवाने कठिन हैं।’

पंजाब में उत्पन्न संकटकालीन परिस्थितियों का सामना करने के लिए संविधान के 59वें, संशोधन के अनुसार राष्ट्रपति श की अधिकतम अवधि को तीन वर्ष किया गया, परन्तु 64वें, 67वें व 68वें संशोधन द्वारा इस अवधि को 6-6 महीने करके बढ़ाया गया। यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि 11 मार्च, 1994 को सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य सरकारों को बर्खास्त करने के राम के अधिकार और सम्बन्धित प्रावधानों की व्याख्या करने के बाद यह ऐतिहासिक निर्णय दिया कि अनुच्छेद 356 के अन्तर्गत राका अधिकार न्यायिक समीक्षा की परिधि में है।

घोषणा के प्रभाव (Effects ofthe Proclamation ) – अनुच्छेद 356 के अन्तर्गत की गई घोषणा के निम्नलिखित प्रभाव (1) ऐसी स्थिति में भारत का राष्ट्रपति राज्य के गवर्नर को राज्य का प्रशासन अस्थायी रूप से सौंप देता है। राष्ट्रपति

अन्य कार्यपालिका संगठन को भी यह कार्य सौंप सकता है। (2) गवर्नर राज्य की वास्तविक कार्यपालिका का रूप ले लेता है।

(3) ऐसे राज्य अथवा राज्यों के लिए संघीय संसद को राज्य-सूची पर कानून-निर्माण का अधिकार मिल जाता है।

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